भजन
बुल्ले शाह-
गल रौले लोकां पाई ए, गल रौले लोकां पाई ए
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अम्मा बाबे दी भलिआई, ओह हुण कम्म असाडे आई
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साडे वल मुखड़ा
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जिस तन लगया इश्क़ कमाल
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हम गम हूए, अब हम गम हूए गम हूए, प्रेम नगर के सैर
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अपणे संग रलाईं पिआरे, अपने संग रलाईं।
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सुन चरखे दी मिठी-मिठी
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मैनूं दरद अवलड़े दी पीड़
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रैन गई लटके सब तारे
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उलटे होर ज़माने आये- तां मैं भेद सजण दे पाये।
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घुंघट चुक ओ सजना
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मेरी बुक्कल दे विच चोर
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कुत्ते रातीं जागे करें इबादत
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की कर गिआ माही, देखो नी की कर गिआ माही
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उठ चल्ले गुआंढों यार, रब्बा हुण की करिये
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उठ जाग, उठ जाग घुराड़े मार नहीं
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इक्को रंग कपाई दा, सब इक्को रंग कपाई दा
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अपणा दस्स टिकाणा, किधरों आया किधर जाणा